आकाश गंगा ओर तरे
हैलो दोस्तो इससे पहले हमने ब्रह्माण्ड के बारे में बताया था आज हम आकाशगंगा ओर तरो के बेरे में जानेंगे।
आकशगंगा दोस्तो जब भी हम रात के समय आसमान में देखते हैं तो हमें कई सारे तरे दिखाई देते है वो भी झुंड में क्या आपने ये जानने की कोशिश की है ये इतने सारे तरे आते कहा से है। ये तरे आकाशगंगा में ही उत्पन होते है और इन्हीं में ख़तम भी हो जाते है।जी हां इन तरो की जननी आकाशगंगा ही होती है । आकाशगंगा को मंदाकिनी भी कहते हैं।
मंदाकिनी अरबों तरो का एक समूह होता है। तरे इन आकाशगंगा के साथ बंधे होते है इन तारों में खुद का अपना गृतवाकर्षण बल होता है।जो इन्हे अपनी दूरी पर बनाए रखता है।ओर आपस में टकराने नहीं देता।
प्रत्येक आकाशगंगा में अरबों तरे होते है।ओर इतनी ही आकाशगंगा हमारे ब्रह्माण्ड में मौजूद है। एक अलाशगंगा का व्यास कई प्रकाश वर्ष हो सकता है।इन आकाशगंगा में 98% तरे ओर 2% गैस व धूल होती हैं। आकाशगंगा की इन विशालता के कारण प्रायद्वीप ब्रह्माण्ड कहते है।
आकशगंगा का वर्गीकरण आकाशगंगा को इसकी विशालता के आधार पर। तीन भाग में बांटा गया है । सर्पिल आकाशगंगा
दीर्घायु आकाशगंगा ओर सर्पिलदीर्घायु आकाशगंगा।
हम जिस आकाशगंगा में रहते है उसे दुग्घमेखला कहते है।इसकी सबसे नजदीक देवयानी सर्पिल आकर वाली आकाशगंगा है।सर्पिल आकाशगंगा दूसरी आकाशगंगा से काफी बड़ी होती है।
दुग्धमेखला (milky way) हमारा सौरमंडल दुगधमेखला आकाशगंगा नामक मंदाकिनी का हिस्सा है इसका व्यास लगभग 10^5 प्रकाश वर्ष तक फैली है।तरो की परत केंंद्र
पर काफी मोटी होती हैं जो मंदाकिनी के। केंंद्र पर तरो के अपेक्षाकृत उच्च संद्रण को दर्शाता है।
हमारा सूर्य ओर ग्रह मंदाकिनी के केंद्र भाग से लगभग 3×10^4 प्रकाश वर्ष की दूरी पर इस सर्पिल संरचना के एक समीप स्थित है।
दोस्तो यदि आसमान साफ हो तो दुगधमेखला मंदाकिनी या आकाशगंगा अंधेरी रात में उत्तर से दक्षिण की ओर आसमान में हल्के सफेद तरो की चोडी पट्टी की तरहा दिखाई देती है जो करोड़ों टिमटिमाते तरो से मिल कर बनी है। रात के अंधेरे में धरती से देखने पर यह प्रकाश की बहती नदी के समान दिखाई देती है। यह आकाशगंगा कहलाती है।
Comments